जोधपुर (रविंद्र शर्मा). श्री गुरुनानक देव ने सन् 1510 के अप्रैल-मई माह में जोधपुर की यात्रा की थी। उनकी यह यात्रा सुल्तानपुर लोधी से शुरू हुई और भटिंडा, सिरसा के रास्ते बीकानेर से जालापट्टी, जैसलमेर, पोकरण से जोधपुर पहुंचे थे। वे यहां पर चांदपोल की सुरम्य पहाड़ियों में रुके थे। एक पुष्करणा ब्राह्मण ने उनकी आवभगत की थी।
इसका सरदार चरणजीतसिंह छाबड़ा द्वारा इकट्ठे किए गए ऐतिहासिक ग्रंथ, पुस्तक और जानकारियों से दावा किया गया है। छाबड़ा ने दावा किया है कि गुरुनानक देव ने अपनी यात्रा में चांदपाेल में भक्तों को प्रवचन भी दिया। इस दौरान गुरु ग्रंथ साहिब की हस्तलिखित प्रति भी रखी गई थी। जिसे बाद में एक पंजाबी साधू अपने साथ ले गए। यह जानकारी उस समय के संत उत्तमसिंह ने जोधपुर के ज्ञानी लाभसिंह को वर्ष 1937 में एक पुस्तक में दी है। वहीं सुल्तानपुर लोधी से यात्रा के विवरण में भी जोधपुर का उल्लेख नक्शे में किया गया है। इसके अलावा पुरातत्व विभाग, बीकानेर और लाडनूं से भी इसकी जानकारी मिली है।
यात्रा के पड़ाव
सुल्तानपुर लोधी से शुरू हुई यात्रा, भटिंडा, सिरसा के रास्ते बीकानेर से जालापट्टी, जैसलमेर, पोकरण से जोधपुर पहुंचे, पुष्कर से आबू पर्वत की ओर गए
ऐसे हुआ खुलासा
भक्त चरणजीतसिंह छाबड़ा ने 9 साल शोध किया, 1937 की एक पुस्तक, नक्शों में मिला विवरण, पुरातत्व विभाग, बीकानेर और लाडनूं से भी मिले संकेत
अंधविश्वास और ऊंच-नीच का भेद खत्म करने के लिए की यात्रा
श्री गुरुनानक देव ने 24 साल में दो उप महाद्वीपों के 60 प्रमुख शहरों की पैदल यात्रा की। उनकी यात्राओं का मकसद समाज में मौजूद ऊंच-नीच, जात-पांत, अंधविश्वास आदि को खत्म कर आपसी सद्भाव, समानता कायम करना था। वे जहां भी गए एक परमात्मा की बात की और सभी को उसी की संतान बताया। उनकी यह यात्राएं आज भी कई मसलों को हल करने का रास्ता बन सकती हैं। खास बात ये है कि गुरुजी इन यात्राओं के दौरान रास्ते में पड़ने वाली हर रियासत के राजा या बादशाह से मिले और उन्हें ये बातें समझाईं।
- पहली यात्रा : गुरुजी अपनी पहली यात्रा के दौरान पंजाब से हरियाणा, उत्तराखंड, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, नेपाल, सिक्किम, भूटान, ढाका, असम, नागालैंड, त्रिपुरा, चटगांव से होते हुए बर्मा (म्यांमार) पहुंचे थे। वहां से वे ओडिशा, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश और हरियाणा होते हुए वापस आए थे।
- दूसरी यात्रा : दूसरी यात्रा में गुरुजी पश्चिमी पंजाब (पाक), सिंध, समुद्री तट के इलाके घूमते हुए गुजरात, महाराष्ट्र, केरल, तमिलनाडु के तटीय इलाकों से होते हुए श्रीलंका पहुंचे और फिर तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, महाराष्ट्र, मप्र, राजस्थान, हरियाणा होते हुए वापस आए।
- तीसरी यात्रा : तीसरी यात्रा में गुरुजी हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, तिब्बत (सुमेर पर्वत का इलाका) होते हुए लेह-लद्दाख, कश्मीर, अफगानिस्तान (काबूल), पश्चिमी पंजाब होते हुए वापस आए थे।
- चौथी यात्रा : गुरुनानक देव अपनी चौथी यात्रा में मुल्तान, सिंध, बलोचिस्तान, जैदा, मक्का पहुंचे और मदीना, बगदाद, खुरमाबाद, ईरान (यहां उनके साथी भाई मरदाना का निधन हो गया था), इसफाहान, काबुल, पश्चिमी पंजाब से होते हुए करतारपुर साहिब वापस लौटे थे।
इन तीन लोगों ने जोधपुर संभाग यात्रा में गुरुनानक देव की सेवा की थी
- जोधपुर के पुष्करणा ब्राह्मण समाज के श्यामादास।
- रामसर के एक ठाकुर नाम अज्ञात।
- शेरगढ़ परगना के भक्त सुथरा शाह।
24 साल में 60 शहरों की यात्रा की, जोधपुर आने-जाने का विवरण
श्री गुरुनानक देव ने अप्रैल-मई महीने में 1510 ईस्वी में यहां पर सुल्तानपुर लोधी से यात्रा शुरू की। यहां से भटिंडा, सिरसा, बीकानेर, जालापट्टी, जैसलमेर, पोकरण से जोधपुर पहुंचे थे। यहां से पुष्कर-अजमेर, मारवाड़, आबू पर्वत, चित्तौड़गढ़ की तरफ गए थे।
गुरुनानक देव की दूसरी यात्रा राजस्थान में होने का सभी ग्रंथों और दस्तावेजों में उल्लेख मिला तो जोधपुर को लेकर जिज्ञासा जगी। 9 साल तक पूरी यात्रा की पड़ताल कर नक्शे और किताबें जुटाई, जिसमें सफलता मिली। -चरणजीतसिंह छाबड़ा, भक्त